Thursday, September 17, 2015

अब भी उस चेहरे का शौक़ीन हूँ..!!




उस टूटी खिड़की के सामने दीवार है,
किरणें भी मुश्किल से झाकती …
बस खोल रखा है हवा के आने जाने के लिए..
फिर भी नज़रें बार-बार उधर देख रही…
शायद अब भी उस मुस्कराहट का शौक़ीन हूँ..
उम्मीद है कोई अजूबा उधर ही हो जाये!!

मुझे डायरी लिखने की आदत नहीं।
पर आज अनययस ही चला आया हूँ
किताबों के अलमीरा के पास.…
कुछ पुराने डायरी हाथ लगे हैं ,
पलट कर ढूँढ रहा कुछ पंक्तियाँ
शायद अब भी तेरे लमहों का शौक़ीन हूँ ,
उम्मीद है कुछ अजूबा इधर ही हो जाये !!

आगे वाले कमरें में रेडियो रखा है.
बस समाचार और मैच की कमेंट्री सुनता हूँ।
आज बेवक़्त ही हर स्टेशन में ढूंढ़ रहा.…
शायद तेरी आवाज़ का अब भी शौक़ीन हूँ..
क्या पता कोई अजूबा इधर ही हो जाये !!



सोने का समय नहीं हुआ अभी..
और देर तक जागने की आदत है मेरी,
चाँद की रोशनी चेहरे पर आ रही.
फिर भी नींद की तालाश में हूँ,
कि आज फिर कोई सपना दिखे। .
शायद तेरा मैं अब भी शौक़ीन हूँ…
उम्मीद है कोई अजूबा उधर ही हो जाये !!

एक शाजिस सी लगाती ये सब, खुदा की.
उस गली में चलना मैंने छोड़ दिया था कब का .
ना ही किसी के आने का इंतज़ार है अब .
पर पता नहीं क्यों, अब भी उस चेहरे का शौक़ीन हूँ
उम्मीद है कँही तो कोई अजूबा हो जाये !!

-- Ziddi Satya